एक आदमी के पास बकरा था उसने सोचा बकरा ज़बा करके अपने पड़ोसियों और दोस्तों को दावत दे दूं उसने बकरे को ज़बा किया और उसको आग पर पकाने लगा उसके बाद उसने अपने भाई से कहा जाकर हमारे दोस्तों और पड़ोसियों को दावत दे दो ताकि वह हमारे साथ मिलकर उसको खाएं उसका भाई बाहर गया और आवाज देकर लोगों से कहा…
दावत की ऐलान के बजाय उसने ऐलान करना शुरू किया कि हमारी मदद करो मेरे भाई के घर में आग लगी हुई है कुछ ही देर में कुछ लोग निकले उसमें से कुछ लोग अपने काम पर लगे रहे बाकी कुछ लोग तो ऐसा रियेक्ट किये कि जैसे उन्होंने कुछ सुना ही ना हो बाकी जो लोग आग बुझाने में मदद को आए उन्होंने खूब जमकर खाना खाया।
जिस वक्त लोग खाना खा रहे थे उस वक्त उसके भाई उसको ताज्जुब से देख रहा था क्योंकि जो लोग खाना खाने आए थे उनको पहचानता भी नहीं था और ना पहले ही उनको देखा था उसने अपने भाई से सवालिया अंदाज में पूछा हमारे दोस्त अहबाब कहां है वो अपने भाई के पास आया और उसने पूरा वाक्य अपने भाई को सुनाया।
उसने कहा यह जो लोग हमारे घर खाना खाने आए हैं यह लोग हमारे घर पर लगी आग बुझाने में हमारी मदद को आए थे ना की दावत खाने इसलिए यही लोग मेहमानों और मेहरबानी के मुस्तहिक़ हैं जिस को तकलीफ के वक्त अपने आसपास ना पाऊं उसको दोस्त, भाई, पड़ोसी, का नाम मत दो।
जो आपके बुरे हालात में जो आपके साथ खड़ा रहे वही आपका सबसे बेहतरीन साथी है और वही आपका हमदर्द है उसको कभी अपने से दूर ना करें।