यह एक सच्चा वाक्य है जो उर्दन की एक मस्जिद में पेश आया इसको नकल करने वाले कहते हैं कि हमारे मोहल्ले में अबुल हसन नामी एक बुजुर्ग का इंतकाल हो गया था बड़ी उम्र के थे अल्लाह ताला उनकी मगफिरत फरमाए साथ वाली मस्जिद में उनकी नमाजे जनाजा और फिर उनके दफन के बाद ताबूत वापस लाया गया रात का वक़्त था मस्जिद बंद होने की वजह से ताबूत को मस्जिद के दरवाजे के सामने रख दिया गया ।
ताकि सुबह को मस्जिद का खादिम उसको उठाकर अपनी जगह पर रख देगा रात को कोई 3:30 बजे का टाइम होगा एक आदमी मस्जिद आया मस्जिद का दरवाजा बंद था वह आदमी कुछ देर तक इंतजार करता रहा सर्दियों के दिन थे उसे सर्दी लग रही थी इसने ताबूत खोला और उसके अंदर सो गया।
आधा घंटा के बाद जब मस्जिद का खादिम आया तो उसने एक नमाजी की मदद से ताबूत को मेहराब के साथ बनी उसकी जगह पर रख दिया नींद की वजह से उन्हें ताबूत के वजन का भी अंदाजा नहीं हुआ मोअज़्ज़िन ने अज़ान दी लोग नमाज के लिए पहुंचे ।
जमात खड़ी हो गई 50 के करीब नमाजी जमात में शामिल थे पहली सफ में मैं खड़ा था और दूसरी रकअत थी सामने ताबूत पर मेरी नजर पड़ गई खौफनाक मंजर देख में डर गया ताबूत हिल रहा था मेरे जिस्म से सनसनीखेज एक लहर दौड़ गई।
मैं आंखें बंद कर ली ताबूत लगातार हिल रहा था शायद मैयत का आदमज़ाद खड़ा था इतने में वह आदमी उठा उसने ताबू से सर बाहर निकाल कर पूछा क्या तुम लोगों ने नमाज पढ़ ली अल्लाह माफ करे लोगों की दौड़े लग चुकी थी मैं तो उल्टे पैर 1000 की स्पीड से घर की तरफ दौड़ कर घर पहुंच कर मालूम हुआ मैं नंगे पैर ही घर पहुंचा हूं।
इमाम साहब तो पहले ही बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े थे कुछ लोग दौड़ते हुए दीवारों से टकराने की वजह से गिरे हुए थे कुछ मेरी तरह नंगे पैर बाहर भाग रहे थे कुछ वजू खाने के पास फिसल कर गिर चुके थे सब अंधाधुन भाग रहे थे जो शख्स ताबूत में था वह भी पीछे से दौड़ रहा था उसको भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हुआ क्या है।