1931 में डोगरा राजवंश के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के खिलाफ अफगान के रहने अब्दुल कादिर नामक शख्स़ की ओर से आवाज उठाई गई महाराजा के खिलाफत करने की वजह से अब्दुल को बंदी बना लिया गया अब्दुल कादिर को अदालत में पेश किया जाना था,
लेकिन जनता के बढ़ते आ’क्रोश को देखकर श्रीनगर स्टेट जेल में ही अदालत बनाई गई। 13 जुलाई 1931 को अब्दुल कादिर के समर्थन में मुस्लिम समुदाय के लोग श्रीनगर स्टेट जेल की ओर आए और जेल के बाहर प्रदर्शन करने लगे और अब्दुल क़ादिर को रिहा करने की मांग करने लगे।
जब प्रदर्शन उ’ग्र हुआ तो महाराजा के निर्देश पर डोगरा आर्मी को गो’लियां चलने का आदेश दे दिया इस से 22 प्रदर्शनकारियों की मौ’त हो गई वही इस किस्से को दोसरी जगह इस तरह लिखा मिला उन लोगों में एक मुसलमान मरकजी जामा मस्जिद श्रीनगर में अजान देने के लिए खड़ा हुआ ।
अभी अल्लाह हू अकबर की आवाज फिजा में गूंजी ही थी की उसके साथ गो’ली चलने की आवाज भी सुनाई दी मोअज़्ज़िन को गो’ली मार दी गई थी उस शख्स को शहादत का दर्जा मिल चुका था।
मगर इस्लाम पर मर मिटने वालों ने उसकी परवाह किए बगैर उस अजान का अधूरा कैसे छोड़ सकते थे एक दूसरा शख्स आगे बढ़ा ताकि वह बाकी की अजान मुकम्मल करें तो अल्लाह हू अकबर की दूसरी सदा के साथ ही दूसरी गो’ली ने उस मोअज़्ज़िन को भी खू’न में लतपत कर दिया ।
मगर तोहीद के मतवाले उस जोशीले भीड़ में से किसी को यह कुबूल ना था कई जगह इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब गो’लियां चलाई गई तो ज़ुहर की अज़ान हो रही थी एक आदमी अजान के लिए खड़ा हुआ तो उस पर गो’ली चली।
इस तरह 22 लोगों ने अपनी जान गवां कर ज़ुहर की अजान को पूरा किया इन 22 प्रद’र्शनकारियों की याद में कश्मीर में 13 जुलाई को शहीदी दिवस मनाया जाता है।