हमारे पास से एक जनाज़ा गुज़रा तो हुज़ूर नबी अकरम सललल्लाहु ताला अलैहि वाला वसल्लम खड़े हो गए और आपके साथ हम भी खड़े हो गए।हम अर्ज़ गुज़ार हुए:या रसूल अल्लाह!ये तो किसी यहूदी का जनाज़ा है।आप सललल्लाहु ताला अलैहि वाला वसल्लम ने फ़रमाया:जब तुम जनाज़ा देखो तो खड़े हो जाया करो (ख़ाह मरने वाले का ताल्लुक़ किसी भी मज़हब से हो)।
और हज़रत अबदुर्रहमान बिन अब्बू लैला रज़ी अल्लाह अनहु से रिवायत है कि हज़रत सहलबिन हुनयफ़ और हज़रत-ए-क़ैस बिन साद रज़ी अल्लाह अन्हुमा क़ादसिया में बैठे हुए थे कि इन के पास से एक जनाज़ा गुज़रा।दोनों खड़े हो गए। इन से कहा गया कि ये तो यहां के गैर मुस्लिम शख़्स का जनाज़ा है।दोनों ने बयान फ़रमाया: إِنَّ النَّبِيَّ مَرَّتْ بِهِ جِنَازَةٌ، فَقَامَ فَقِیلَ لَهُ: إِنَّهَا جِنَازَةُ یَهُودِيٍّ، فَقَالَ: أَلَیْسَتْ نَفْسًا؟
(एक मर्तबा) हुज़ूर नबी अकरम सललल्लाहु ताला अलैहि वाला वसल्लम के पास से जनाज़ा गुज़रा तो आप सललल्लाहु ताला अलैहि वाला वसल्लम खड़े हो गए।अर्ज़ किया गया: ये तो यहूदी का जनाज़ा है।आप सललल्लाहु अलैहि वाला वसल्लम ने फ़रमाया: क्या ये (इन्सानी) जान नहीं है?
कुरान पाक की इन आयात और हदीस से साबित हुआ होता है कि सभी के साथ में भलाई करनी चाहिए, और अगर किसी हिन्दू को खून की ज़रूरत हो तो उसे मुस्लिम खून भी दे सकते हैं।इस में कोई हर्ज़ नहीं है। इस्लाम भलाई का दरस देता है, और सभी के साथ भलाई से पेश आना चाहिए।
क़ुरान मज़ीद में फ़रमाया اِنَّمَا یَنْهٰکُمُ اﷲُ عَنِ الَّذِیْنَ قٰـتَلُوْکُمْ فِی الدِّیْنِ وَاَخْرَجُوْکُمْ مِّنْ دِیَارِکُمْ وَظٰهَرُوْا عَلٰٓی اِخْرَاجِکُمْ اَنْ تَوَلَّوْهُمْج وَمَنْ یَّتَوَلَّهُمْ فَاُولٰٓئِکَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ
अल्लाह तो सिर्फ तुम्हें ऐसे लोगों से दोस्ती करने से मना फ़रमाता है जिन्हों ने तुमसे दीन (के बारे) में जंग की और तुम्हें तुम्हारे घरों (यानी वतन) से निकाला और तुम्हारे बाहर निकाले जाने पर (तुम्हारे दुश्मनों की) मदद की।