शेख साहब लाहौर में एक छोटे से दफ्तर में नौकरी करते थे फिर उनके दिन ऐसे फिरे कि दफ्तर के मालिक को पसंद आए गए और वो अपनी बेटी की शादी उनके साथ कर दिए कहते हैं कुदरत शेख साहब ऐसा मेहरबान हुई कि दिन रात और रात दिन में बदलते गए।
और शेख साहब एक दुकान से एक मार्केट फिर एक फैक्ट्री से दो चार और फिर न जाने कितनी फैक्ट्रियों के मालिक बनते गए धन बरसता गया दो बच्चे हो गए शेख साहब ने कराए वाले कमरे से एक बड़ा सा बंगला उसके बाद उन्होंने महंगे इलाके में एक कोठी खरीद ली।
वहां फुलवारी वगैरह लगवाई हुई थी उनको एक माली के जरूरत पर शेख साहब अपने एक नौकर सुल्तान को फैक्ट्री से निकालकर अपनी कोठी में 1500 महीने पर नौकरी लगा दी सुलतानत बहुत शरीफ और अपने काम से काम रखने वाले इंसान था।
ना किसी से कोई झगड़ा ना कोई दुश्मनी ना कभी कोई शिकायत की। एक बार शेख साहब सुबह 10:00 बजे किसी काम से घर वापस आए गाड़ी दरवाजे पर खड़ी कर दी अभी वापस दफ्तर जा रहे थे की पौधों को पानी दे रहे सुल्तान का हाथ पाइप से फिसला और शेख साहब के कपड़ों पर पूरी तरह भीग गया।
सुल्तान ने जब ये मंज़र देखा तो शेख सिहाब के पावों पर गिर गया और माफी मांगने लगा शेख साहब का गुस्सा तो सातवें आसमान पर था ना आव देखा ना ताव वही खड़े-खड़े सुल्तान को नौकरी से निकाल दिया कहा शाम से पहले इस घर से निकल जाओ सुल्तान बेचारा सामान बांधकर घर के बाहर दरवाजे के पास ही बैठ गया।
उसने सोचा कि शेख साहब का गुस्सा शाम तक ठंडा हो जाए तो वापस बुला लेंगे। शाम को जब शेख सिहाब वापस आए तो देखा सुल्तान बैठा हुआ है उन्होंने अपने गार्ड से कहा उसको धक्के मार के निकालो यहां नजर ना आए सुबह हुई तो देखा कि सुल्तान जा चुका था अल्लाह जाने कहां गया।
वक्त गुजरता गया शेख साहब की तेजी से तरक्की करते कारोबार को धीरे धीरे ठहराव सा आने लगा कारोबार की रफ्तार कम पड़ गई लेकिन फिर भी शेख साहब जिंदगी से बहुत मुतमइन थे फिर फैक्ट्री में एक दिन आग लग गई पूरी फैक्ट्री जलकर राख हो गई कुछ मजदूर भी जल गए शेख साहब को बैठे-बैठाए करोड़ों का झटका लग गया।
कारोबार में नुकसान होना शुरू हुआ तो शेख साहब के माथे पर बल पड़ना शुरू हो गए बड़ा बेटा यूनिवर्सिटी का छात्र था दोस्तों के साथ कहीं घूमने गया था वापसी पर एक्सीडेंट हुआ वो जवान लड़का भी दुनिया से चला गया और शेख साहब की कमर टूट गई।
नुकसान पर नुकसान होते गए बंगले को बेचकर आम जगह पर दूसरा घर लिया जब अक्ल कुछ ठिकाने लगे तो पीरों और फकीरों के यहां जाने लगे कि शायद कोई दुआ हाथ लग जाए और बिगड़ी हुई जिंदगी फिर से संवर जाए। कुछ कारोबार बेचकर और कुछ दूसरी प्रॉपर्टी को रखकर बैंक से कर्जा लिया।
और छोटे बेटे को एक नया कारोबार कराया उसके पार्टनर दोस्त ने उसके साथ दगा किया और अक्सर पैसा डूब गया । अब शेख साहब 60 साल की उम्र में चारपाई से लग गए एक दिन उनका एक पुराना जानने वाला मिलने आया हालात देखे तो बहुत अफसोस किया और कहा एक बुजुर्ग आये हुए है बहुत अल्लाह वाले हैं दाता साहब के घर में कुछ के लिए रुके हुए हैं।
चलो उन से दुआ कर आते हैं शेख साहब फौरन तैयार हो गए वहां पहुंचे जहां बुजुर्ग ठहरे हुए थे मुलाकात की और अपनी परेशानी को बयान कि उन्होंने आंखें बंद की और कुछ देर मुराकबे रहे फिर अपनी आंख खोली और शेख साहब को देखते हुए कहा तुमने सुल्तान को क्यों निकाला था।
यह सुनते ही शेख के ऊपर जैसे क्या मत टूट पड़ी और आंखों से आंसू कितना थमने वाली लड़ी जारी हो गई शेख साहब बुजुर्ग के पांव में गिर गया और माफी मांगने लगा बुजुर्ग ने उससे कहा मेरी बात सुनो परवरदिगार रज्जाक है और इश्क जरूर देगा।
लेकिन उसका वसीला इंसानों को ही बनाएगा ऊपर से नीचे आते पानी की तक्सीम जिस तरह नहरों नालों की तरह होती है इसकी तक्सीम उसी तरह परवरदिगार के नजदीक हम में से एक एक शख्स के वसीला है किसी और के रिज़्क़ का अगर आप वसीला बनने से इनकार करोगे तो तुम्हारे हिस्से का वो रिज़्क़ जो उस वसीले से तुम्हें बतौर मुआवजा मिल रहा था।
खत्म हो जाएगा तुम्हें जो लाखों-करोड़ों सुल्तान को 15 सो रुपए देने के लिए मिलते थे तुमने वो रोक लिए ऊपर वाले ने तुम्हारा मुआवजा खत्म कर दिया अब जाओ सुल्तान को ढूंढो अगर वह मान जाए और माफ कर दे तो तुम्हारा दिन फिर जाएंगे।
शेख साहब की दुनिया ही लूट गई हो सर नोचते हुए घर आए पुराने कागज ढूढने लगे शायद कहीं से सुल्तान के कोई पता मिल जाए ढूंढने के बाद कुछ भी ना मिला सुल्तान को ढूंढने चकवाल जाने वाली बस में बैठकर चकवाल चला गए शायद सुल्तान मिल जाये ।
लेकिन उसका कोई पता नही चला छोटा बेटा ढूंढते ढूंढते चकवाल अड्डे पर आ पहुंचा और बाप को वापस लाहौर ले आया लेकिन शेख साहब का दिली सुकून खत्म हो गया था कुछ दिन बाद शेख साहब फिर घर से गायब हो गए तो बेटे को मालूम था कि कहां मिलेंगे।
वह चकवाल पहुंचा तो देखा बाप जमीन पर बैठा सर पर राख डाल रहा था और कह रहा था “सुल्तान” तुम कहां हो, “सुल्तान” तुम कहां हो, बेटा रोता हुआ बाप को वापस ले आया कुछ दिन के बाद शेख साहब का इंतेक़ाल हो गया इसको लिखने वाले ने अपने दोस्त को पूरी कहानी सुनाएं।
और उस से कहा कि चपरासी को ना निकालो उस रिज़्क़ तुम से जुड़ा है इसे तो रब कहीं और से भी दे देगा उसके पास वसीला बनाने के लिए किसी चीज की कोई कमी नहीं लेकिन कहीं ऐसा ना हो तुम उस मुआज़वे वाली नेमत से महरूम हो जाओ।
मुझे ये किस्सा पढ़े हुए 13 साल गुजर गए हैं आप यकीन करें उसने मेरी जिंदगी बदल दी मैं पैसे के लेन-देन में बहुत ज्यादा एहतियात करने लगा अगर किसी के पास 10-12 रह गए तो कभी मांगने नहीं गया कहीं ऊपर वाले से मिलने वाला मुआवजा कम ना हो जाए ।
मैंने ढूंढ ढूंढ कर और नेक नियत वसीला बनने की कोशिश की जो भी मुस्तहिक़ मिले उनका ख्याल रखने की कोशिश की मैं उन 13 सालों में कभी तंगदस्त (गरीब) नही हुआ एक से बढ़कर एक वसीला मिलता गया और मैं आगे बढ़ता गया।