पश्चिम एशिया में स्थित इज़राइल में पिछले लम्बे समय से राजनीतिक उथल पुथल की स्थिति है. छोटे से देश में कई राजनीतिक दलों के प्रभावी होने की वजह से इसमें किसी एक दल को बहुमत मिल पाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है. कटु राजनीतिक बयानबाज़ी और एक दूसरे से बिलकुल अलग विचार रखने वाली पार्टियाँ किसी तरह साथ आकर सरकार बना तो लेती हैं लेकिन कुछ ही महीनों में ये सरकार गिर जाती है. 2019 के बाद से ये देश में पाँचवें आम चुनाव होने जा रहे हैं.
राष्ट्रपति इसाज़ हर्ज़ोग ने मंगलवार को लोगों से अधिक से अधिक मतदान करने की अपील की. उन्होंने कहा कि नागरिकों को ऐसे वक्त में अपने वोट का इस्तेमाल करना चाहिए जब कई देशों में अरबों लोग इस अहम लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित हैं. इज़राइल क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज़ से एक छोटा देश है लेकिन फ़िलिस्तीन के साथ इसके विवाद की वजह से ये अन्तराष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में बना रहता है. इज़राइल के ऊपर फ़िलिस्तीन के लोगों के ख़िलाफ़ अत्याचार करने के आरोप लगते रहते हैं. साथ ही इल्लीगल सेटलमेंट्स का मुद्दा इज़राइल को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कमज़ोर करता है.
इज़राइल का सबसे अहम् साथी अमरीका है. अमरीका के सहयोग की वजह से इज़राइल अपने आपको ताक़तवर देशों के साथ खड़ा पाता है. हालाँकि पिछले कुछ सालों में इज़राइल की स्थिति कमज़ोर पड़ती दिखी है, इसके पीछे बड़ा कारण देश के अंदरूनी राजनीतिक हालात का ठीक न होना है. इज़राइल एक यहूदी देश है, यहाँ यहूदी आबादी 74 प्रतिशत से अधिक है जबकि अरब आबादी भी 21% के क़रीब है. अरब समुदाय में अधिकतर मुस्लिम धर्म से ताल्लुक़ रखते हैं जबकि कुछ संख्या इसाई समुदाय की भी है. इज़राइल के राजनीतिक माहौल में कट्टर यहूदी पार्टियों से लेकर सेक्युलर यहूदी पार्टियाँ भी हैं और साथ ही इसी तरह से अरब पार्टियाँ भी हैं. इसके अलावा वामपंथी पार्टियों का भी कुछ इलाक़ों में प्रभाव है.
चुनाव होने के बाद भी किसी को बहुमत मिलेगा या नहीं इसको लेकर अभी भी संशय बना हुआ है. ऐसे भी इज़राइल में राजनीति प्रक्रिया कुछ इस तरह की है कि चुनाव के बाद भी सरकार बनने में काफ़ी समय लगने वाला है. सवाल लेकिन ये है कि अगर सरकार किसी दल या समूह की बन भी जाती है तो क्या इस बार सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी?