आज हम एक ऐसी लड़की के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके वालिद अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम को तकलीफ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी यहां तक कि कुरान पाक में उन पर सूरह उतारी गई जिसमें उनपर लानत की गई वो हजरत दुर्रह (रज़ि अल्लाहु अन्हा) हुजूर के चचा अबूलहब की बेटी थीं।
हिजरत से पहले मक्का मुकरमा में ईमान लायी, उन के शौहर हज़रत हारिस बिन नौफल (रज़ि अल्लाहु अन्हु.) ने भी इस्लाम कबूल किया, फिर दोनों ने मदीना की हिजरत की। हजरत दुर्रह जब मदीना पहुँची।
तो मदीने की औरतों ने कहा : तुम्हारे हिजरत करने से कोई फायदा नहीं इसलिए के तुम्हारे बाप अबूलहब के खिलाफ़ एक सूरह नाजिल हुई; उन्होंने हुजूर (ﷺ) से शिकायत की, तो हुजूर(ﷺ) ने नमाज के बाद लोगों को जमा किया और फ़र्माया :
मेरे खानदान वालों के बारे में मुझे क्यों तकलीफ़ दी जाती हैं? हुजूर, की इस बात से लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ हज़रत दुर्रह (र.अ.) की फ़ज़ीलत के लिए इतना काफ़ी है के हुजूर (ﷺ) ने उनके लिए फर्माया: जो तुम्हें गुस्सा दिलाएगा अल्लाह को उस पर गुस्सा आएगा।
और फ़रमाया : मैं तुम से हुँ और तुम मुझ से हो। हजरत दुर्रह(र.अ.) है के वालिद अबू लहब को हुजूर (ﷺ) से सख्त दुश्मनी थी, उस के बावजूद अपने वालिद की परवाह किए बगैर उन्हों ने इस्लाम कबूल किया। यह इस्लाम की हक्कानियत की दलील है।
हुजूर ने फ़तहे मक्का के बाद हज़रत दुर्रह के शौहर हज़रत हारिस (रज़ि अल्लाहु अन्हु.) को जिद्दह का गवर्नर बनाया था। हजरत दुर्रह (रज़ि अल्लाहु अन्हा.) से मुहद्दिसीन ने कुछ हदीसें नकल की हैं।
उन की वफ़ात हज़रत उमर (रज़ि अल्लाहु अन्हु.) के जमान-ए-खिलाफ़त में सन २० हिजरी में हुई।