जब आप किसी बड़े शहर के निवासी होते है तो आप अपने करियर को लेकर हर तरह से आजाद होते है. लेकिन बात जब किसी कस्बे या गाँव में बड़े सपने देखने की जाए तो वहां की मानसिकता लोगों को सोचने से पहले ही डिमोटिवेट कर देती है.
हालाँकि इस समय परिवार ही आपका सबसे बड़ा हथि’यार होता है.जो आपके सपनों को पूरा करने के लिए आपके हर कदम में आपके साथ खड़ा रहता है.
छोटे से गाँव की वसीमा बनी कलेक्टर महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के एक छोटे से गाँव से नाता रखने वाली वसीमा ने भी कुछ बड़ा करने की ठान ली थी. हालाँकि उनके लिए ये सब कर पाना इतना भी आसान नहीं था.
उनके भाई ने उनको उनकी मंजिल तक पहुँचाने के लिए उनकी बहुत मदद की थी. उनके भाई ने उनके कदमों में आने वाली परेशानियों को अपने सर माथे लगा लिया.
जानकारी के लिए आपको बता दें वसीमा साल 2018 महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग बैच की रैंक होल्डर रह चुकी है. अपने बैच में वसीमा ने 3rd रैंक हासिल की थी. डिप्टी कलेक्टर के पद पर उन्होंने पद भार सम्भाला था.
फिलहाल वसीमा सेल टेक्स डिपार्टमेंट में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात है. इस मुकाम पर काबिज होने के लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिए थे.
रिक्शा चला भाई ने दिया साथ जिस गाँव से वसीमा ताल्लुक रखती है. वहां की लड़कियों के लिए पढ़ाई-लिखाई को लेकर कोई जागरूकता नहीं है. तीन हजार की आबादी वाले इस गाँव में जैसे लड़की यौवनवस्था में कदम रखती है, तो उनकी शादी कर दी जाती है.
वही इस गाँव की लड़कियों को सिर्फ सातवीं कक्षा तक ही पढने की अनुमति जी जाती है. हालांकि इस हालात में भी उनके भाई ने उनका पूरा साथ दिया था. वो दुसरे के खेत में मजदूरी किया करते थे.
लेकिन जब वसीमा के पिता की तबियत खराब हुई तो ऐसे में पुरे घर की जिम्मेदारी उनके भार के कंधो पर आ गई. फिर भी उन्होंने रिक्शा चलाकर अपनी बहन की पढ़ाई में कोई आंचा नहीं आने दी.
वसीमा भी एक समय मजदुर ही थी. हालाँकि पढाई के प्रति जूनून उनके आत्म विश्वास को तोड़ न सका. करीब 6 किलोमीटर पैदल कर चलकर वो अपने स्कुल पहुंच पाती थी.
साल 2012 में उन्होंने SSC बोर्ड में टॉप किया था. यही वजह है किस्मत भी उनके लिए रास्ते बनाती गयी. और आज वह एक सम्मानित पद पर कार्यरत है.

भाई ने रिक्शा चलाकर पढ़ाया, खुद भी की खेतों में मजदूरी, वसीमा ने कलेक्टर बन किया नाम रोशन…
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