औरंगाबाद (Aurangabad) की छात्रा मरियम मिर्जा (Mariyam Mirza) ने 15 महीने में 30 मोहल्लों में पुस्तकालय खोलकर शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा कारनामा अंजाम दिया है. अब उनकी उपलब्धियों को रेखांकित करते हुए अमेरिकन फेडरेशन ऑफ मुस्लिम ऑफ इंडियन (AFMI) ओरिजिन अवार्ड प्रदान करेगी. मरियम मिर्जा चाहती हैं कि इन लाईब्रेरीज में विभिन्न विषयों की पुस्तकें पढ़कर छात्रों में पढ़ाई के प्रति रुचि और प्यार जागे. मरियम का नारा है, ‘‘तुम मुझे 5000 रुपये दो, मैं तुम्हें एक पुस्तकालय दूंगी.’’ यह नारा अब एक आंदोलन में बदल गया है.
मरियम मिर्जा ने द रीड एंड लीड फाउंडेशन (RLF) के तहत 8 जनवरी, 2021 को डॉ एपीजे अब्दुल कलाम नाम की अपनी पहली ‘मोहल्ला लाइब्रेरी’ शुरू की थी और वे अब तक 30 लाइब्रेरीज विभिन्न इलाकों में खोल चुकी हैं. ये लायब्रेरी औरंगाबाद की झुग्गी बस्तियों में स्थित हैं. मरियम मिर्जा ने मोहल्ला लायब्रेरी की शुरुआत के मकसद के बारे में बात करते हुए कहती हैं कि बच्चे खेलने के बजाय किताबें पढ़कर समय का सही इस्तेमाल करें.
अवार्ड के बारे में आरएलएफ सचिव और मरियम के पिता मिर्जा अब्दुल कय्यूम नदवी ने बताया कि मरियम द्वारा झुग्गी बस्तियों में गरीब बच्चों के लिए 30 पुस्तकालय खोले गए. इसलिए एएफएमआई 31 दिसंबर 2022 को होने वाले एक कार्यक्रम में इस बच्ची को पुरस्कार से सम्मानित करेगी.
मरियम के कलेक्शन में लगभग एक हजार किताबें हैं. इनमें से कुछ किताबें युवाओं की पसंद के अनुसार भी रखी गई हैं. उन्होंने बताया कि कोरोनाकाल में लंबे समय से स्कूल बंद थे. इसलिए अधिकांश बच्चे घर में अपना समय खेलकर बिता रहे थे. तभी उनके दिमाग में बच्चों को पुस्तकों से जोड़ने का विचार आया. कोरोना काल की शुरुआत में बोरियत से बचने के लिए मरियम ने अपने घर में ही लायब्रेरी खोली थी. मरियम को बचपन से ही किताबें पढ़ने का शौक था. जब भी वह अपने पिता की किताबों की दुकान पर जाती थी, तो अपनी पसंद की कुछ किताबें घर ले आती थी. धीरे-धीरे उनके पास 156 किताबों का भंडार हो गया. मरियम के अनुसार मैंने कई महीने घर में अपने पापा की दुकान पर रखी हुई किताबें पढ़कर बिताए थे. लेकिन अब ये लायब्रेरीज एक अभियान बन चुकी हैं.
मरियम चाहती हैं कि बच्चे इस लायब्रेरी में किताबें पढ़कर अपने समय का सही इस्तेमाल करें. 12 साल की मरियम को पिछले साल उसके पापा ने 150 किताबें गिफ्ट की थी. इससे पहले भी उसके पास 156 किताबें और रखी थीं. मरियम ने बताया कि उसने ये सभी किताबें लायब्रेरी में रखी हैं. बच्चे यहां से पढ़ने के लिए किताबें ले जा सकते हैं और उन्हें दो-तीन दिन में लौटा भी सकते हैं. लाइब्रेरी के दरवाजे शाम 5 से 6 बजे के बीच खुले रहते हैं.
बच्चों की दिलचस्पी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चार-पांच साल का बच्चा नदीम किताब लेने के लिए लाइब्रेरी खुलने का इंतजार करता है. हालांकि वह पढ़ने के लिए बहुत छोटा है. मरियम कहती हैं कि एक बार उन्होंने नदीम से पूछा कि क्या वह किताबें लेकर क्या करता है, क्योंकि वह इन्हें पढ़ने के लिए बहुत छोटा है. उसने उससे कहा कि वह किताब अपनी दादी को देता है, जो उसके लिए कहानियाँ पढ़ती हैं.
मरियम कहती हैं कि दान किए गए या पड़ोस में जमा किए गए 5,000 रुपये में से, वह 2,000 रुपये में किताबों के ढेर के लिए एक अलमारी और 3,000 रुपये की किताबें खरीदती हैं. बच्चों को पुस्तक आवंटन और पुस्तकालय के रखरखाव के प्रभारी बनाया जाता है. मिर्जा मरियम की हर लाइब्रेरी को बच्चे चलाते हैं. मरियम के साथ ही 30 बच्चों की टीम इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है. बच्चों की किताबों के प्रति रुचि देखकर अभिभावक भी हैरान हैं और लगातार उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं.