हर फ़िल्म को देखने का सभी का नज़रिया अलग होता है जिसे फ़िल्म से जुड़े लोगों को समझना होता है। आमतौर पर फ़िल्म से जुड़े लोग सारे क्रिटी’सिज़म को झेल लेते हैं पर कई बार कुछ लोग ऐसा कुछ कह जाते हैं कि उनका जवाब देने से पीछे हटना मुश्किल होता है। कुछ ऐसा ही हुआ जब हाल ही में रीलिज़ हुई फ़िल्म “गुलमकई” जो कि पाकि’स्तानी ऐ’क्टिविस्ट मलाला यू’सुफ़ज़ई की ज़िंदगी पर बनी है। इस फ़िल्म को देखकर आज तक की पत्रकार हंसा कोरंगा ने एक नेगे’टिव रि’व्यू किया जिसका जवाब दिया फ़िल्म के निर्देशक एच ई अमजद खान ने।
अमजद ख़ान ने कहा कि “मैं समझ सकता हूँ इस फ़िल्म से आपको बो’रियत हुई है अलग अलग लोगों की ख़ुशी और सुकू’न का ज़’रिया अलग होता है लेकिन आपने अपने मान’सिक त’नाव को दूसरो पर थो’पने की कोशिश की और उम्मीद किया कि दर्शको को भी बोरि’यत हो और फ़िल्म ना देखने जाएँ,आपको कैसे लगा कि बाक़ियों को भी ये फ़िल्म बो’र लगेगी?”

आगे अमजद ख़ान कहते हैं “आपके क्रिटी’साइज़ करने का तरी’क़ा निहा’यत ही अशि’क्षित और अप’मानजनक है मुझे नही पता आप किस तरह की कहानी और निर्देशन की उम्मीद लगा कर आयी थीं लेकिन जब मैंने मलाला और उसकी फ़ैमिली को फ़िल्म दिखाया और उनके फ़ैमिली के साथ साथ यूनाइटेड नेशन का भी मुझे स’पोर्ट मिला तो घिसा पि’टा बॉलीवुड मूवी बनाने का और आप जैसे लोगों को ख़ुश करने का शौक़ मेरे मन से पूरी तरह से निकल गया और मुझे लगा की मैंने जो बनाया सही बनाया”
अमजद ख़ान ने हंसा के उठाए एक सवा’ल का जवा’ब देते हुए कहा “आप बहुत नि’राश हैं कि फ़िल्म में दर्शाए गए एक ख़ास दह’शतग’र्द की दाढ़ी का रंग गाजर के रंग कैसा क्यूँ है? आपको नही लगा कि आप एक बार गूगल सर्च कर लें उस आतं’की का नाम सूफ़ी मुह’म्मद है जो अपने सफ़ेद बाल मेंहदी से रंगा करता था,मु’स्लिम कट्ट’रवा’दियों की ये बहुत पुराना शौ’क़ है।
अमजद ने आगे बताया “2005 में जब उसको पाकि’स्तानी आ’र्मी ने गिर’फ़्तार किया था तब उसके बाल और दाढ़ी बिलकुल सफ़ेद थे 2007 में जब वो छूटा तब अपने बाल और दाढ़ी रंगा कर आया था तो ज़ाहिर से बात है की 2007 की कहानी में मैं 2005 के सू’फ़ी मुह’म्मद को दिखा नही सकता। समय और साल के साथ जो supers नीचे आते रहे आपको उन पर ग़ौ’र करना चाहिए था।
आगे अमजद कहते हैं “आपको ये समझ नही आया की मेरे फ़िल्म में दिखाए गए एक ग्यारह साल की ला’चार लड़की कैसे आज पूरी दुनिया को इन्स्पा’इअर कर सकती है लेकिन सच तो ये है उसके उस मान’सिक त’नाव और ड’र को जीतते हुए वो किस तरह से फ़ीनिक्स पंछी की तरह फिर से वापस आती है और मलाला यूसु’फ़ज़ई बनती है जो आप समझ नही पायीं..ख़ैर..इतनी गहरी सोच और वि’चार की उम्मीद मैं आपसे नही करता।”